Emotional torture in marriage relationship पति-पत्नी की शादी-शुदा जिन्दगीमे छोटी-मोटी नोक-जोक चलती रहती हे खासकर जब मातापिता बननेके बाद इसका प्रमाण बढ़ जाता हे,घर और कामकाज दोनोमे बैलेंस नहीं कर पाते और पति-पत्नी एक दूसरेको कॉम्पिटिटर या दुश्मन की तरह देखने लगते हे और बर्ताव करने लगते हे।
पति-पत्नी ही झगड़ा निपटा ले तो वो अच्छी बात होती हे लेकिन अगर पति-पत्नी झगड़े को बढ़ावा मिले ऐसा व्यव्हार करते हे तो पति-पत्नी के बिच जो छोटीमोटी पवित्र नोक-जोक एक झगड़े का स्वरुप धारण कर लेती हे अगर पति-पत्नी झगड़ा करनेके बाद भी एक दूसरे को माफ़ नहीं करते और ज़गड़ते रहे तो झगड़ा मनमोटाव का स्वरुप धारण कर लेता हे, उसके बाद पति-पत्नी एक दूसरे के ऊपर इमोशनल अत्याचार शुरू कर देते हे।
कोर्ट पति-पत्नी दोनों की बात सुनती हे और तय करती हे की किसने किसके साथ अत्याचार किया हे या नहीं किया हे। पति-पत्नी में से किसी एकने अत्याचार किया हो तो यह डाइवोर्स की महत्वपूर्ण वजह बन जाता हे।
इमोशनल अत्याचार पर फिल्म देव-दी में एक गाना भी बनाया गया हे-यह गाना एक प्यारीसी मजाक और मनोरंजन के तोर पर फिल्माया गया हे और अत्याचार के कई किस्से टीवी सीरियल के माध्यम से प्रस्तुत किये गए हे।
हिन्दू मैरिज एक्ट १९५६ की सेक्शन १३(१) (१-ऐ) के मुताबिक पति-पत्नी दोनोमेसे किसी एक ने दूसरे के ऊपर अत्याचार किया हो तो अत्याचार पीड़ित कोर्ट जाकर अत्याचार के आधार पर विवाहित जीवन का विच्छेद कर सकता हेहिन्दू मैरिज कानून में अत्याचार की डेफिनेशन जरूर दी गयी हे लेकिन इससे कोई डिवोर्स की अप्लीकेशन पर अप्लाई नहीं किया जा सकता हे.
क्योकि नामदार सुप्रीम कोर्टने ऐ.जयचंद विरुद्ध अनिल कौर और श्रीमती मायादेवी विरुद्ध जगदीश प्रसाद के केस में ये तय किया हे की क्रिमिनल प्रोसेडिंगमें रीजनेबल डाउट से पर होकर साबित करना होता हे लेकिन पति-पत्नी के पवित्र और नाजुक रिलेशन को ध्यानमे लेते हुए सिविल केसीसमें यह कॉन्सेप्ट अप्लाई नहीं किया जा सकता हे।
पति-पत्नी का रिश्ता पवित्र होता हे पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ प्यार, केयर, और ओपिनियन जैसी कई चीजे परिस्थितिया शेयर करते हे। शादी को दो दिलो और परवारो का का संगम माना गया हे।
डिवॉर्स तय करते समय ये बात को भी ध्यान में रखना अनिवार्य हो जाता हे, दाम्पत्यजीवन की दूसरे पहलू को भी हम नजर अंदाज नहीं कर सकते जिसमे पति-पत्नी समाजकी और परिवार की खातिर अत्याचार सहसह कर अपना जीवन बिता रहे हे ऐसे पति-पत्नी जिन्दा लाश बनकर जी रहे होते हे, ऐसी मैरिज लाइफ किसीको खुश नहीं रख सकती हे ये बात भी भूलनी नहीं चाहिये।
अत्याचार की वजह पर कोर्ट पति-पत्नी के बिच सुलह करने का भरपूर प्रयास करती हेअबतक के सभी कोर्ट के निर्णय को पढ़े तो इनमे एक बात ये निकलती हे की अत्याचार का जो व्यव्हार कारण बनता हे वो बात महत्वपूर्ण और गंभीर स्वरुप की होनी चाहिए, रोज-रोज की छोटी-मोटी नोक-जोक अत्याचार का कारण नहीं बन सकती।
गुस्सा, चिढ़ना छोटी-छोटी नोक-जोक दाम्पत्यजीवनमे सामान्य होता हे, धीरज, क्षमा एडजस्टमेंट, विश्वाश और प्यार शादी-शुदा जीवन के मजबूत आधारस्तम्भ होते हे।
छोटी-छोटी बातो में सेन्टी होकर लग्न-विच्छेद तक पहुंच जाने का अभिगम हमारी कुटुंबव्यवस्था और समाज व्यवस्था को नष्ट कर सकता हे।
किन ये निर्णय का दूसरा और महत्वपूर्ण पहलू ये भी हे की जो अत्याचार कर रहा हे उसके साथ बाकि जीवन साथमे बिताने की कोई गुंजाईश या सम्भावना ही रही नहीं हो, कोई पक्ष जानबूझकर दूसरे पक्षके आहत हो ऐसी बेहेवियर करे, शरीर तंदुरस्ती को नुकशान पहुचाये, या ऐसी वर्तणुक करे के भय उत्पन्न हो, ऐसा अत्याचार हुआ हो तो अत्याचार पीड़ित व्यक्ति को डाइवोर्स मिल सकता हे.
ऐसी बेहेवियर मानसिक और इमोशनल या शाब्दिक गाली और अपमान के स्वरुपमे भी हो सकती हे जिसके कारण कोई व्यक्ति मानसिक स्वरूपसे डिस्टर्ब और इफ़ेक्ट होती हे तो कोर्ट ये बातो को नजर अंदाज नहीं कर सकती।
ऐ. जयचंद के केस में पति-पत्नी ने लव-मैरिज की थी, पंद्रह साल के शादी-शुदा जीवनके बाद पति की कम्प्लेन थी की दो साल से वो अपनी पत्नी के साथ सोए नहीं थे और उन दोनों के बिच शारीरिक सम्बन्ध नहीं रहे थे और उनकी बीवी उन्हें गन्दी गालिया देती थी, और उनके व्यावसायिक और सामाजिक नेटवर्क में चरित्रहिन होने के एलीगेशन करती थी ये एलीगेशन प्रूव होता गिनकर सुप्रीम कोर्टने पति के लग्न-विच्छेद को प्रमाणित किया।
श्रीमती मायावती के केस में पत्नी का बेहेवियर ज्यादा ही अग्रेसिव था वो अपने बच्चो और पति के साथ बहुत ख़राब तरीके से पेश आती थी, पति के पाससे बारी-बारी पैसे मांगती रहती थी और पैसे न मिलने के कारण वो झगड़ा करती रहती थी.
बच्चोको मार डालकर उसका दोष पति और उसके परिवार पर डालने का कहती रहती थी, वो तीन बच्चो के साथ कुंएमें गिर गयी थी लेकिन वोह बच गयी और बच्चे मर गए जिसके लिए उसपर भारतीय दंड संहिता की कलम ३०२ का केस भी दाखिल हुआ उसमे उनको जमानत मिलने पर उन्होंने पति और उनके ससुरालवालो पर दहेज़ का गलत मुकदमाँ दाखिल किया ये साबित होने पर न्यायिक अदालत ने पति को डाइवोर्स दिलाया।
पंकज महाजन विरुद्ध डिम्पल उर्फ़ काजल के केस में पत्नी की बेहेवियर डिप्रेसन और स्क्रिजोफ्रेनिआ दिखाती थी वो अपने पति और उनके परिवारवालों को बर्बाद कर डालने की बाते कहती रहती थी ।
और उसने एक बार छत से कूदकर जान देनेकी भी कोशिश की थी लेकिन उनके पतीने उन्हें बचा लिया था ये केस में भी नामदार कोर्ट ने पतिकी याचिका को मंजूर रखकर डाइवोर्स पति को दिलाया था।
विनीता सक्सेना विरुद्ध पंकज पंडित के केस में पति डिप्रेसन और स्क्रिजोफ्रेनिया का शिकार था ये बात उसने शादी के वक्त अपनी पत्नी से छुपाकर शादी की थी ।
ये शादी के बाद उसकी पत्नी के साथ उनके शारीरिक सम्बन्धभी नहीं थे उनकी शादी-शुदा जिंदगी के १३ साल के रिलेशन का अंत लानेका कोर्ट ने निर्णय करके डाइवोर्स मंजूर किये।
श्रीमती आरती मोंडल विरुद्ध श्री भूपति मोंडल के केस में ५९ सालके बुजुर्ग़ पति को अत्याचार के कारण ख़राब बित चुके पिछले वर्षौको कोर्ट लोटा नहीं सकती लेकिन बाकि बचे सालो को अत्याचार के कारण ज्यादा बिगड़ने भी नहीं दे सकती- ये तथ्य के आधार पर डाइवोर्स प्रमाणित किये गए थे।
सुभाष परशुराम शेठ विरुद्ध मधु मंचेरसिंघ भंडारी के केस में नामदार गुजरात हाईकोर्टने पति की डाइवोर्स की याचिका ख़ारिज करके कहा की वास्तवमे ६० साल के बाद के जीवनमे पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्यार, ऊष्मा और सहकार की जरुरत होती हे और दोनों को एक-दूसरे का सहारा बनना हे इसीलिए डाइवोर्स प्रमाणित नहीं किये जा सकते।
सुमन कपूर विरुद्ध सुधीर कपूर के केस में एज्युकेटेड पत्नीको अपनी कॅरियर इतनी ज्यादा पसंद थी की पति को बताये बिना ही दो बार पत्नीने एबोर्सन करवा लिया था ।
और गलत सिक्युरिटी नंबर लिख देने के कारण उनके पति को किसी दूसरी स्त्री से अनैतिक सम्बन्ध होनेके गलत आक्षेप किये थे ये सब ध्यान में रखकर कोर्टने डाइवोर्स प्रमाणित किये थे।
मदनलाल विरुद्ध सुदेशकुमारी के केसमें पत्नीने किसी और अन्य पुरष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बांधकर बच्चा पैदा किया था ।
और पत्नी को पतिने जिन्दा जलानेकी कोशिश की हे ऐसे गंभीर आक्षेप किये गए थे इसी वजहसे पत्नीको डाइवोर्स देनेका निर्णय कोर्टने प्रमाणित किया था
अजय सयाजीराव देसाई विरुद्ध राजश्री अजय देसाई के केस में पत्नी के शरीर पर सफ़ेद दाग़ थे फिरभी पतिने पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखे थे ये हकीकत जानने के बाद कोर्टने डाइवोर्स ना -मंजूर किये थे।
अत्याचार के आक्षेप पर डिवोर्स देना हे की नहीं देना हे ये केस की परिस्थिति और बर्ताव पर आधरित हे रामीकुमार विरुद्ध जुलमीदेवी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने बताया की इसबारेमे कोई निश्चित फार्मूला नहीं हे ।
अत्याचार दोनों में से किसी एक ने किया हो लेकिन अत्याचार की वजह से दाम्पत्यजीवन निष्प्राण और सवेंदनहीन नहीं होना चाहिए ऐसी परिस्थिति में अगर शादी टूट जाती हे तो इसको इरीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ़ मैरिज कहा जाता हे।
are you passionate to read Adopt on now legally active attitude: Can you resist Unlawful arrest
As per the foundations of the Bar Council of Bharat (India), Advocate Viren.S.Dave isn't permissible to solicit work and advertise. By clicking the “Agree” button and accessing this web site (www.asklbylaw.com) the user absolutely accepts that you just Maineasure} seeking info of your own accord and volition which no kind of solicitation has taken place by me.The info provided below this web site is exclusively accessible at your request for information functions solely. It mustn't be understood as soliciting or advert. Advocate Viren.S.Dave isn't accountable for any consequence of any action taken by the user hoping on material / info provided below this web site. In cases wherever the user has any legal problems, he/she altogether cases should obtain freelance legal recommendation.