Medical negligence-डॉक्टर या अस्पताल की लापरवाही का निर्णय करने हेतु अदालतमें एक्सपर्ट ओपिनियन लेना अनिवार्य हे या नहीं ?

Posted byaskbylaw_admin on August 5, 2020 
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Medical negligence in treatment

 

Medical negligence इंसान अस्पताल को भगवान का मंदिर समझकर उसकी तकलीफ दूर करने के लिए जाता हे लेकिन इंसानको कभी-कभी भगवान् और उनके इस मंदिरसे बहोत परेशान होकर जीवन जीने पर विवश हो जाता हे। पुराने लोग कहते हे की जीवन में डॉक्टर के पास जाना नहीं पड़े तो अच्छी बात हे लेकिन डॉक्टर और अस्पताल जाना कभी-कभी अनिवार्य हो जाता हे तब अगर हॉस्पिटल और डॉक्टर मरीज की ट्रीटमेंट में लापरवाही बरते तो मरीज को जान का खतरा हो सकता हे या मरिज की जान भी जा सकती हे। दोनों स्थितिमें परिवार को भुगतना पड़ता हे, अगर मरीज की जान चली जाये तो उसे वापिस तो नहीं ला सकते लेकिन लापरवाही बरतनेवाले डॉक्टर और अस्पताल को अदालत ले जाकर लापरवाहीसे निधन हुए मरीज की आत्माको सच्ची श्रद्धांजलि जरूर दे सकते हे।

Medical negligence in treatment

अदालतने डॉक्टर और अस्पतालकी लापरवाही से मरे और गंभीर स्वरूपसे आहत हुए कई मरीज या फिर उनके परिवारों के साथ सच्चा न्याय किया हे। ऐसे ही एक माननीय सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को आप के साथ शेयर करता हु, मलेरिया जैसे लक्षण दिखने के कारण वि.किशनराव जो मलेरिआ डिपार्टमेंट में काम करते थे उनकी पत्नी को तारीख २०-०७-२००२ के दिन हैदराबाद की निखिल सुपर स्पेशलिटी अस्पतालमें दाखिल किया गया था, उनकी पत्नी को बहुत ठण्ड लगती थी इसीलिए उनकी जाँच करने का निर्णय लिया गया, मेडिकल जांच में मलेरिआ का डाइग्नोसिस नहीं हुआ, और अस्पताल के डॉक्टर द्वारा दी गयी कोईभी दवाइया उनकी बीवी पर असर नहीं कर रही थी, अस्पताल की औरसे उनकी बीवी को बोत्तलमें दवाई दी जा रही तो उन्होंने देखा की बोटलमे कुछ कचरे जैसा हे, वि कृष्णराव ने तुरंत अस्पतालके अधिकारिओ को बताया लेकिन अस्पतालवालोने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

Any Treatment

अस्पतालमें दाखिल होनेके तीन दिन बाद वि. किशनराव की पत्नी को साँस लेनेमें भी परेशानी हो रही थी उनको ओक्सिजेन दिया गया, वि. कृष्णराव के मुताबिक उस स्टेज पर ओक्सिजेन की कोई जरुरत नहीं थी, उसके बाद हररोज उनकी पत्नी की तबियत अच्छी होने के बजाय ज्यादा ही बिगड़ी जा रही थी उनकी पत्नी को यशोदा अस्पतालमें शिफ्ट किया गया ये अस्पतालमें ऐसी रिमार्क लिखी थी की मरीज बेहोश थे, पल्स नहीं थे, बी.पी. नहीं था, तमाम जीवन रक्षक उपाय किये गए थे लेकिन वि.कृष्णरावकी पत्नी को बचाया नहीं जा सका और तारीख २४/०७/२००२ की रात को ११:३० बजे उन्हें मृत घोषित किया गया।

Check-up

 

वि. कृष्णरावने जिले के कंस्यूमर फोरम में अस्पताल के खिलाफ कम्प्लेन दर्ज करी उसमे बताया गया की उनकी पत्नी की मेडिकल ट्रीटमेंटमें अस्पतालवालोने लापरवाही बरती उसके कारण उनकी पत्नीकी मृत्यु हो गई फोरम ने अस्पतालके नियामक डॉक्टर व्यंकटेश्वर रावने जमा कराये एविडन्स पर रिलाय किया। डॉक्टर व्यंकटेश्वर रावने कहा की " मेने मलेरिआ की ट्रीटमेंट ही नहीं की हे"जबकि यशोदा अस्पताल से जो डेथ सर्टिफिकेट दिया गया था उसमे मोत का कारण हार्ट अटैक और मलेरिया का कारण बताया गया था। फोरम का आदेश होने के बावजूद अस्पतालने ट्रीटमेंट के कागजात कोर्ट में सब्मिट करनेमे देरी की और जब कागजात दिए गए तब जो लिखा था उस पर लिखापट्टी की गयी थी।डॉक्टर राव के स्वीकार करने पर, केस के रेकॉर्ड और डाइग्नोसिस रिपोर्ट के आधार पर फोरम ऐसे निष्कर्ष पर पहुंची की मरीज को मलेरिआ ही था लेकिन मरीज की ट्रीटमेंट टाईफोर्ड समजकर की गयी थी। अस्पतालने अपना पक्ष रखकर कहा की फरियाद कर्ताने एविडेंस एक्ट के प्रावधानों का पालन नहीं किया हे और यशोदा अस्पताल के कागज को रोक दिया था फोरम्ने यह बात का स्वीकार नहीं किया और वि. कृष्णराव के फेवर में अपना निर्णय सुनाया।

Consent of Admission and treatment

 

निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने स्टेट कमीशनमें अपील दाखिल की स्टेट कमीशनने फौरम का निर्णय रद करते हुए कहा की निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने लापरवाही बरती हो ऐसा प्रमाणित करनेमे फरियादी असफल रहे हे और स्टेट कमीशनने इंडिरेक्टली ऐसा भी कहा की निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने जो सारवार करी हे वो बराबर हे उसमे निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने लापरवाही बरती हो ऐसा कोई एक्सपर्ट ओपिनियन नहीं हे।

Indoor Outdoor treatment

फरियादिने राष्ट्रिय कमीशनमें न्याय के लिए गुहार लगाई। राष्ट्रिय कमीशनने भी ऐसा प्रस्थापित किया की निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने या उनके डॉक्टरने कोई लापरवाही की नहीं हे मरीज का इलाज करनेमे निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पताल के डॉक्टरने देखभाल के साथ हर संभावित प्रयास किया हे

 

Daily checkup

फरियादी वि.कृष्णरावने सर्वोच्च अदालतमे राष्ट्रिय कमीशनने दिए निर्णय के विरुद्ध न्याय के लिए गुहार लगाई। सर्वोच्च अदालतने जिले फोरम के ये निष्कर्ष को स्वीकार किया की फरयादी की पत्नी को टाईफोर्ड का गलत इलाज किया गया था और ये बात निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालने स्पष्टरूपसे स्वीकार किया हे की मरीज को मलेरिया का इलाज किया गया नहीं हे। जबकि यशोदा अस्पताल के मरण प्रमाणपत्र के मोत का कारण हार्ट अटैक और मलेरिया बताया गया हे, सर्वोच्च अदालतने ज्यादा बताते हुए कहा की ऐसे केस में लापरवाही स्पष्टरूपसे दिखाई देती हो वहा हकीकत क्या हे यही सिद्धांत लागु होता हे फरियादी को कुछ भी साबित करनेकी जरुरत नहीं रहती, जबकि हकीकत अपने आप बोलती हे ऐसे केसमें प्रतिविवादी को साबित करना होता हे की उन्होंने इलाजमे पूरी सावधानी बरती थी और ड्यूटी निभाई थी इस तरह प्रतिविवादी अपने ऊपर किये गए आक्षेपों को रद करवा सकता हे। सर्वोच्च अदालतने येभी कहा की स्टेट कमीशन और राष्ट्रिय कमीशन दोनोने अपना निर्णय गलत करके कहे हे की एक्सपर्ट ओपिनियन अनिवार्य हे लेकिन एक्सपर्ट ओपिनियन की अनिवार्यता केवल जटिल केसीस में ही पड़ती हे, मेडिकल लापरवाही के सभी किस्सोमे एक्सपर्ट ओपिनियन के लिए भेजना सर्वोच्च अदालत के लार्जर बेंचने किये निर्णयके सिद्धांतो के विरुद्ध हे। सर्वोच्च अदालतने जिल्ला फोरमने किये आदेश को मान्य किया और फरियादी वि.कृष्णराव को २,००,०००/- का कोम्पन्सेशन और १०,०००/- रिफंड और २०००/- की रकम खर्च के तौर पर दिलाई और सर्वोच्च अदालतने निखिल सुपर स्पेसियालिटी अस्पतालको ये सब रकम फरियादी को १० दिन के अंदर देनेका आदेश पारित किया

Medical negligence
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